यूरोप की चिकित्सा व्यवस्था लड़खड़ाई
लंदन। यूरोपीय देशों की चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह से लड़खड़ा गई है। कोरोना महामारी के बाद हेल्थ केयर पर यहां के नागरिक सबसे ज्यादा स्वास्थ्य सेवाओं पर हो गए हैं। लोगों को इलाज के लिए डॉक्टरों और नर्सों को रिश्वत देनी पड़ रही है। डॉक्टर भी इससे अछूते नहीं रहे।
पश्चिमी यूरोप के विकसित देश भी
अव्यवस्था के शिकार हो गए हैं।ब्रिटेन में 65 लाख मरीज प्रतीक्षा सूची में है। स्पेन जैसे देश में ऑपरेशन कराने के लिए 4 माह से अधिक की प्रतीक्षा सूची है।यूरोपीय देशों में 5 लाख डॉक्टरों एवं 10 लाख स्वास्थ्य कर्मियों की की कमी है। कोरोनावायरस के बाद लोगों कोकई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यहां के नागरिकों को समुचित चिकित्सा सुविधा और परामर्श नहीं मिल पा रहा है।
40 फ़ीसदी डिप्रेशन के शिकार
यूरोपीय मेडिकल काउंसिल की रिपोर्ट में यूरोप के हर 10 में से चार व्यक्ति डिप्रेशन के शिकार हैं।डॉक्टरों की कमी के कारण डिप्रेशन के मरीजों को अपॉइंटमेंट भी नहीं मिल पा रहा है। फ्रांस जैसे विकसित देश में 60 दिन तक की प्रतीक्षा सूची का सामना मरीजों को करना पड़ रहा है।
स्विट्जरलैंड में सबसे ज्यादा खर्च
यूरोपीय यूनियन के अनुसार स्विट्जरलैंड में स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति 7।73 लाख रुपए का खर्च होता है। नार्वे में प्रति व्यक्ति इलाज का खर्च 6।40 लाख रुपए है। जो वहां की सरकार खर्च करती है।
स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने भारी भरकम बजट
यूरोप के कई देशों में स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई है।नागरिकों को समुचित उपचार नहीं मिल पा रहा है। डॉक्टरों की कमी होने के कारण मरीजों को परामर्श भी नहीं मिल पा रहा है। ऑपरेशन तो बहुत दूर की बात है। स्वास्थ्य संकट को बेहतर बनाने के लिए यूरोपीय देशों द्वारा 24 लाख करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। जर्मनी ने 8 लाख करोड़, फ्रांस ने 5 लाख करोड, इटली ने 4 लाख करोड़ रुपया भारतीय मुद्रा में खर्च किया है।इससे समझा जाता है कि यूरोपीय देशों में चिकित्सा सुविधा के क्या हाल हैं।